''कहते हे उसूलों पे दुनिया टिकती है ,''परन्तु क्या वो उसूल जो सभी प्रकार से सामान है ,मानसिकता बो हे जिसमे हर व्यक्ति को कुछ अवधारणा हे तो कुछ विचार अलग -अगल हे मानो की जिसमे वह सभी सह रहे हो ''परन्तु वह सहता नहीं है ,बल्कि दुसरो को इस हद तक परेशान कर देता है। ''
'' जहाँ शब्दो ं के बाण (व्यंग )भी बहुत कुछ कर देते है। जो शब्दो के व्यंग भी तो एक ऐसे आग लगा देने या कहे तो सीधे शब्दो ं मनुष्य के अंदर उथल -पुथल माचा देते है ,वही से ऐसी ही कुछ शब्द मानसिकता को उत्तेजित (बढ़ा )कर देते हे जो दृश्य वो आपने मस्तिस्क में बना लेता है। ,जो वह इस मानसिकता को जन्म देता है ;फिर क्या शुरू हो जाती है एक विचार जो एक सोच जो समाज बदलने ,का काम कर सकती है। वही अगर सोच को समय के साथ बदला न जाये तो न जाने कितने परिवार ,कितने लोगो की भावनाओ ं को आराम से कुचल दिया जाता है। ,वहाँ से आगे न बढ़ाबा ही मानसिकता को एक और न लेजाकर एक खराब ''
'' स्थिति तक पहुँचने का कार्य करता है। ,जहाँ बेटे और बेटी में फर्क नहीं किया जाता है ,फिर क्यों बेटिओ को रोटी बनाना एवं सभी कामों को सिखाया जाता है।,
''किन्तु दूसरी और बेटों को सिर्फ पढाई ही करने को कहा जाता है। ,जबकि दोनों सामान है तो रोटी से लेकर अन्य कार्यो को भी जो घर का है ,उसे बेटो को भी मान ,सम्मान ,मर्यादा दोनों को बराबर सिखाना चाहिए। ,,
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